राजस्थान की राजनीती में मचे भूचाल के बीच एक बात तो साफ हो चली है की जनता चाहे किसी भी नेता को या किसी पार्टी को वोट देकर विधानसभा में भेजे, लेकिन राजनितिक महत्वाकांक्षा के चलते आजकल के सभी नेतागण अपने सिद्धांतो, मूल्यों के साथ समझौता करने से गुरेज नहीं करते है.
ताजा उदाहरण राजस्थान की सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस का है जहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पाइलट के बीच चल रही नाराजगी अचानक खतरनाक मोड़ पर पहुँच गयी जब सचिन पायलट ने बागवती तेवर दिखा दिए. उन्होंने दावा किया कि 30 विधायक उनके समर्थन में है और वर्तमान सरकार अल्पमत में है.
हालाँकि मंगलवार को सत्ताधारी पार्टी ने राज्यपाल से मुलाकात करके अपने समर्थन में 106 विधायकों की परेड करवा कर ये दिखा दिया कि वर्तमान में राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनी रहेगी.
आखिर सचिन पायलट ने बगावत क्यों की?
दरअसल अशोक गहलोत और सचिन पायलट में मनमुटाव 2018 के चुनावो के बाद ही हो गया था जब आलाकमान ने युवा नेतृत्व को तरजीह न देते हुए लोकसभा चुनावों को मद्देनजर रखते हुए अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया था. साथ ही सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री पद देकर विवाद को शांत करने की कोशिश की गयी थी. तब से लेकर इन दोनों नेताओं के बीच तनाव की खबरें आती रही है. सचिन पायलट जहा समय समय पर इस बात का आरोप लगते रहे है की राजनीतिक मामलो, खासकर महत्वपूर्ण मसलों, नियुक्तियों और तबादलों में उनकी राय नहीं ली जाती है और ऐसे में उनके उपमुख्यमंत्री पद पर बने रहने का कोई मतलब नहीं है.
तो क्या कांग्रेस सरकार पर से खतरा टल गया है?
मौजूदा हालातों को देखते हुए ऐसा नहीं लगता है. भले ही कांग्रेस सरकार बहुमत का दावा करे लेकिन ये बात भी जग जाहिर है कि अब इन दोनों नेताओं के बीच का मनमुटाव ज्यादा ही बढ़ेगा. और इस बात पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता कि मौजूदा हालात में दोनों नेता आखिर किस प्रकार सहमति के आधार पर मिलजुल कर सरकार चलाते रहेंगे क्योंकि अगर ऐसा ही होता तो आज राजस्थान की राजनीती को ये दिन नहीं देखने पड़ते.
आखिर बी जे पी क्यों खामोश है?
भारतीय जनता पार्टी ने शुरू से ही इस मामले में आत्मसयम बरता है और कोई महत्वपूर्ण राजनीतिक बयान नहीं दिया है. शुरू में बीजेपी के कुछ नेताओं पर खरीद फरोख्त करने का आरोप लगा था और उनके खिलाफ मुकदमे भी दर्ज किये जाने की खबरे आई थी पर बाद में ये संकट अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट में बदल गया. भारतीय जनता पार्टी इस बार वेट एंड वाच की स्थिति में नजर आ रही है भले ही भीतरखाने कुछ भी चल रहा हो. शायद ये भी हो सकता है कि बीजेपी इसे संकट को अवसर में बदलने का प्लान भी बना रही हो. इससे पहले भी महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक में भी इस तरह का सियासी ड्रामा देश ने देखा है.
तो राजस्थान की जनता क्या समझे इस संकट से?
सभी राजनैतिक दलों की ये कभी नहीं भूलना चाहिए कि जनता उन्हें सेवा करने के लिए चुनकर भेजती है ना की सरकारों के गिरने और बदलने के खेल खेलने के लिए. क्योंकि एक बात तो साफ़ है की इसका खामियाजा सीधे जनता को भुगतना पड़ता है जब नेता अपनी निजी महत्वाकांक्षा के चलते हुए अपना बक्त बर्बाद करते है. साथ ही कांग्रेस के आलकमान को भी इस बात को समझना चाहिए की इस गुटबाजी के चलते पार्टी इस वक्त अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. इस तरह के संकटों को दूर करना पार्टी के आलाकमान का दायित्व है लेकिन लंबे समय से कांग्रेस पार्टी अपने अध्यक्ष पद के मामले को तय नहीं कर पा रही है तो इस संकट को कैसे हल करेगी. ये इस वक्त एक बड़ा सवाल है.