हर पल एक क़सक
तेरे पलकों की छाँव में
जीवन का नवरंग
छुपा दू सतरंगी सपने मेरे
जो देखे थे साथ तेरे।
कसमकश
जिन्दा रहने की
हौसला
लड़ने का ज़माने से
हो रहा दरबदर
वक्त के संग।
मांझी
ले पतवार
खे रहा उलटी नैया जीवन की
में छटपटा रहा
अपने जीवन के डोर पकडे
जीने का एक सहारा
तेरे पलकों में छुपे
सपनो को पाने की चाह।
मिलना कभी
फिर दिखाऊंगा जख्म तुझे
जो दिए इस ज़माने ने
तुझे चाहने की सजा थी
छुड़ा लूंगा अपने सपनो को
जो कैद है
तेरी नशीली आँखों में
जो दिखती थी
ख्वाब सदा
जिंदगी जीने का। ।

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